सरदार जी 12 बज गए कहने पर उन्हें गुस्सा क्यों आता है? निष्पक्ष जवाब देने की मेरी कोशिश।

सरदार जी 12 बज गए क्या' ऐसा पूछने पर पंजाबी सिख धर्म के लोग ग़ुस्सा क्यों हो जाते हैं? इसके पीछे क्या वजह हैं?“

12 बजने के संदर्भ में सरदारजी का मज़ाक़ उड़ाने हेतु जो प्रश्न पूछता है वो कोई ज़्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकता । इस बात को समज ने के लिए भारत वर्ष का इतिहास समजना होगा ।
 वह समय जब मध्य पूर्व से इस्लाम का आक्रमण हो रहा था . लुटेरे सिंध , पंजाब होते हुए भारत में घूस कर निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या करते थे ।उनकी सम्पत्ति लूट लेते थे ।
 उनकी बहन बेटीया और औरतों का बलात्कार करते थे।
फिर उनको ग़ुलाम बनाकर मंडी में बेच देते थे . ऐसा बारंबार होता था ।
उस समय पर शिख पंथ की स्थापना हुई जिनका उद्देश इन आक्रांताओं का सामना करना और अपने देश, संपति और आबरू की रक्षा करना था . इस कीलिए शिखो ने ईसलमिक आक्रांताओं जैसा ही परिवेश धारण किया ।
चूँकि उनकी संख्या , विदेशी आक्रांताओं से कम थी वो लोग गोरिल्ला हमला करते थे . मतलब उस ज़माने के नियम मुताबिक़ युद्ध के मैदान में जा कर युद्ध करने की बजाय , स्ट्रटीजिक लोकेशन से हमला कर के अपने आप को और सारे शिख सैनिक को सुरक्षित रखते थे ।
 यह पद्धति से युद्ध लड़ कर शिखओ ने ना सिर्फ़ अपनी रक्षा की पर अपने साथ रहने वाले हिंदुओ और अन्य धर्मीयो की रक्षा की . गोरिल्ला हमला ज़्यादा करके १२ बजे करते थे ताकि दुश्मन भोजन में हो और गाफ़िल हो ।
  इस से उनको युद्ध जितने में आसानी होती . इस बात से चिढ़े हुए ईसलमिक आक्रांताओं ने शिखो को नीचा दिखाने के लिए १२ बजे वाला मज़ाक़ प्रचलित किया ।
  और इस इतिहास को ना जानने वाले या भूल जाने वाले मूर्ख हिन्दू , शिखो का मज़ाक़ उड़ाने लगे . उन शिखो का जिसने उनकी रक्षा की . यह इतिहास की याद दिलाने एक उक्ति प्रचलित है जिसका दूसरा भाग है “ गुरु गोविंदसिंह ना होते तो सुन्नत हो गयी होती सबकी “. इसलिए अगर आप किसी हिन्दू को शिखो का मज़ाक़ उड़ते हुए पाए तो यह इतिहास याद दिलाए ।और कोई खलसवादी शिख से बहस हो तो उसे उनके गुरुओं जे बलिदान की याद दिलाए जो उन्होंने ईसलमिक आतंकवादी के ख़िलाफ़ लड़ने दिए थे ।

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