सोचा मेरे परिवार को इन कपड़ों में कोई आपत्ति नहीं है, तो किसी को न होगी। यही सोच पास की दुकान तक चली गई। वहाँ पहुँची और बोली ‘भईय्या दो पेन दे देना एक ब्लैक,एक ब्लू’..
दुकान वाले को भइया बोला मैंने, लेकिन उसकी भी निगाह मेरे स्कर्ट पर टिकी हुई थी। खैर उसने तो नजर हटायी, लेकिन वहीं कुछ छिछोरे टाइप के लड़के खड़े थे। उन्होंने कमेन्ट पास करते हुये कहा- “ब्लू तो खुद लग रही है ..(पटाखा टाइप), ब्लू लेकर क्या करेगी…तेरे गोरे बदन पर तो काला रंग जमेगा वैसे”
तरह तरह के कमेन्ट करना प्रारम्भ कर दिए।
तभी दूसरा बोलता है कि “इन लड़कियों को अपनी खूबसूरती दिखाने का सिर्फ़ बहाना चाहिए।”
उनमें से एक लड़का सामाजिक जिम्मेदार बनते हुये कहता है कि “ऐसे ही लड़कियों का रेप होता है, फिर परिवार वाले न्याय के लिए गुहार लगाते हैं। यदि परिवार अभी रोक लेता तो ऐसे रेप की घटनाएं कम हो जाती।”
मैं दुकान से घर तो आ गयी, लेकिन अब मैं सिर्फ़ इस सोच में पड़ी थी कि देश में जितने रेप हो रहे है उनका कारण क्या छोटी स्कर्ट है?
मैं गलत हूँ या वो?
तभी मुझे ध्यान आया, कल के एक खबर की हेडिंग “चाचा ने 4 साल की भतीजी का किया बलात्कार” अब मै यह सोचने लगीं कि उस मासूम बच्ची ने क्या पहना था?
उसके किन अंगों ने चाचा को भड़का दिया?
फिर मेरी समझ में आया कि शायद इन दरिंदों को ये मासूम भी पटाखा लगती होगी? यदि इन वस्त्रों का हमारे समाज की मानसिकता पर इतना असर हैं, तो साड़ी में लिपटी हुयी महिलाओं, अबोध बच्चों, आदि का बलात्कार क्यों होता है?
मैं सोच रही थी, कि जिन लड़कियों ने कभी अपने जिस्म का एक हिस्सा भी न दिखने दिया हो उनका रेप क्यों होता है? बहुत सी बातें दिमाग़ में सिर्फ़ घूम रही थी कि क्या इन लड़को के कमेन्ट के बाद मुझे स्कर्ट नहीं पहनना चाहिए? कहीं मेरे साथ ऐसी घटना न हो जाए?
तमाम उलझनों के बाद भी मैंने यही सोचा कि कपड़ों के छोटे होने न होने से रेप नहीं होता। जिसकी मानसिकता दूषित है, वो बुर्के में छिपी औरत या किसी औरत की लाश यहां तक की जनवरों तक को भी बर्बाद करने से नहीं चूकता।
पुरूष घर में या बाहर सिर्फ बनियान या सिर्फ एक छोटा सा कपड़ा पहने घूमता रहता है। उसपर कोई तंज नही कसता वहीं पुरुष कपड़ों की आड़ मे महिलाओं पर तंज कसते है, क्योंकि उन्हें मौका चाहिए अपनी घटिया सोच को सही रूप में प्रदर्शित कर किसी की इज्जत से खेलने का।
एक चार वर्ष की बच्ची में कौन सा यौवन झलक रहा होता हैं ? पचास साल का आदमी उस बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसे मरने की हालात मे छोड़ देता है। ऐसी तमाम घटनाओं को विचार करने पर यही सोच रही थी कि हमारा समाज इस पर कितना गम्भीर है, तो ध्यान आया कि अभी कुछ दिन पहले एक नेता ने कहा छोटे कपड़े न पहने!
ऐसे ही हमारी पुलिस या मंत्री कभी कभी ऐसे बयान दे देती हैं कि शर्म आती हैं । पुरूषवादी मानसिकता का परचम लहराने के उद्देश्य में वो किसी भी हद तक जाने में भी नही हिचकते।
जवान लड़की यदि सूट पहनकर भी बाहर निकले तो भी उसका रेप होता है। क्या उसके दुपट्टे का दोष था जो यौवन से अलग प्रतीत हो रहा था?
छोटे कपड़े बताकर तमाम केसों को दबा दिया जाता है,लेकिन पूरे कपड़े वाले को भी क्यों नहीं न्याय मिलता?
पुरूषों को अपनी सोच पर गहन विचार की आवश्यकता है। उनकी आँखें मिनी स्कर्ट लड़की की टांगों में न जाने क्या खोजती हैं?
पुरूषों को विचार करने की आवश्यकता है, कि छोटी बच्ची में वो क्या खोजते है?
वो अपने हवस के लिए कपड़े को कब तक दोष देंगे!
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नारे से ही बेटियां नही बचने वाली। जब उन्हें कुचलने वाला ही साठ वर्ष का अपना चाचा,ताऊ हो तो कहाँ सुरक्षित रहेंगी बेटियाँ??
और एक बार फिर से वही बात खुद ही साबित होती है“छोटे कपड़े नहीं, छोटी सोच होती है….”
- yogesh gendre
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| लेखक योगेश गेन्ड्रे |
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