साक्षी और अजितेश की जगह आप होते तो क्या करतें?
साक्षी और अजितेश ने अपने घर वालो के खिलाफ शादी कर क्या सही किया?
जानिये 21वीं सदी में भी आखिर क्यों मजबूर और बेबस होती है देश की बेटियां?
कब बदलेगा हमारा समाज और कौन बदलेगा?
एक वीडियो वायरल क्या हुई पुरे देश भर में इसके चर्चे आम हो गए। बात कुछ दिनों पहले की है , मसला अभी भी गरम हैं। जी हा मैं बात कर रहा हूँ साक्षी और उसके पति अजितेश की।
ज़रा सोचिये 21वीं सदी में जब पूरी दुनिया की निगाहे भारत की चंद्रयान 2 पर टिकी है, आर्टिकल 15 जैसी फ़िल्म भारतीय समाज के कड़वी सच्चाई को उजागर कर आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रही है। एक तरफ जहाँ देश में महिला सशक्तिकरण के लिए क्या आम क्या खाश सब मिलकर प्रयास कर रहे है तो दूसरी तरफ विकास, शिक्षा , समानता , तकनीक आवास और आधुनिकता जैसी मुद्दों से एक सुनहरे भविष्य की अपेक्षाए जिस भारत में लोगो ने गणतंत्र से किये है। उसी भारत में न जाने ऐसी कितनी जगहें है ऐसे कितने लोग है , अनगिनत उदाहरण ऐसे है जो आज अपनी ज़िंदगी अपनी मर्जी जी नही सकते है। ज़िंदगी जीना तो दूर उन्हें अपने छोटे मोटे निजी फैसले तक लेने के लिए अपने परिजनों पर निर्भर रहना पड़ता है। मैं समझता हूँ निश्चित रुप से यह एक आधुनिक और समृद्ध भारत के सपने को साकार करने की लिए यह एक बड़ी तो नही लेकिन महत्वपूर्ण अड़चन हैं।
इशारा आप समझ रहे होंगे बात देश की नहीं उस देश में रहने वाले नागरिको की सच्चाई की है। सालों से चली आ रहे अमानवीय और पुरानी मानसिकता को ख़त्म करने की है।
(सबूत के तौर पर प्रस्तूत किया गया प्रमाण)
साक्षी जो की एक शिक्षित और नए ज़माने की लड़की है लेकिन अफ़सोस उसने नया ज़माना कभी देखा ही नहीं, एक तरफ जहा दुनिया तकनिकी सहायता की जरिये सैकड़ो किलोमीटर दूर बैठे मरीज का घर बैठे इलाज करने में सफलता हासिल कर चुकी हैं वो भी भारत के ही एक डॉक्टर थे, तो दूसरी तरफ साक्षी और उसके जैसे ना जाने कितनी लड़कियो को आज भी एक मोबाइल फ़ोन तक पकड़ना मानो देशद्रोह से कम नही है।
क्या करें जब सालो से चली आ रही रुढ़िवादी अंधी परम्पराये रूँह में बस गयी हो। लेकिन साक्षी जैसे बेगुनाह मासूम और समझदार लड़कियों का क्या जो इन अँधेरे में उजाले को, अपने सपनो को तक नहीं देखती। जहा सपने देखने से पहले ही उसे कुछ करने से मना कर दिया जाता है, मैं सिर्फ साक्षी की बात नही कर रहा हु साक्षी जैसे ना जाने कितनी ऐसे लड़किया है जो अपनी पूरी ज़िंदगी परिवार के फैसलो पर काटते है चाहे वो सही हो या गलत लेकिन खुद के लिए उन्हें फैसले लेने का कोई अधिकार तक नहीं होता, सोचिये कैसा होता होगा उस लड़की के लिए 21 वी सदी का भारत, जिसे उसके घरवाले सिर्फ इसलिए पढ़ाते है ताकि रिश्ता तय करते वक़्त सिर्फ ये बता सके की लड़की ने ये degree complete किया है, कैसे होता होगा उस लड़की के लिए अपने ज़िंदगी में कुछ बनने का सपना देखना अपने परिवार और समाज के लिए कुछ कर पाने का सपना देखना है, यकीनन उसके लिए ये सब बेबुनियाद होगा।
इंसान की फितरत है वो दूसरों की समस्याओं को तब तक नही समझ सकता जब तक वो खुद उस परिस्थिति से होकर ना गुजरे ,उसे करीब से ना देखे। सभी भारतीय मुल के लोगो से मेरा निवेदन है देश की इन की ऐसी मजबूरियों को समझकर उन्हें सहारा दीजिये ना की उन्हें बदनाम कर मानवता को कलंकित।
मैं ज़रा पूछना चाहता हूँ देश की जनता से क्या एक पढ़ें लिखे व्यक्ति को क्या अपने जीवन में कोई में कोई फैसला लेने का अधिकार नही है? ..
बिलकुल है ना, ये बात मानवीय मूल्यों के संरक्षण की है, एक तरफ जहाँ माँ बाप बेटीयों को खुलकर जीने का हक़ देकर समाज में उनके आदर्श भविष्य को, एक सकारात्मक सोच को सुनिश्चित कर रहे है तो वही दूसरी तरफ लड़कियों को घर से निकलना भी मना है।
सही क्या है गलत क्या है?
मैं ये बिलकुल नही कह रहा की लडकिया अपने परिवार के खिलाफ जाए, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ की एक पिता अपने बेटी के साथ जाय, उनकी भावनाये समझे, आखिर अब अब वो भी एक citizen बन चुकी है, कम से कम उसे बोलने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए, साक्षी के परिवार वालो को उसकी भावनाये समझनी चाहिए ।
इतिहास गवाह है इंसान एक बहुत ही संवेदनशील प्राणी है, वह प्रेम और मर्यादा के बंधन में रहकर सब कुछ कर सकता है, अपने सपनो का गला घोटकर घूंट घूंट कर नहीं जी सकता। साक्षी ने भी वही किया ज़िंदगी भर अपने पिता की हां में हां मिलाई लेकिन उसके पिता ने उसके हां का जवाब ना से ही दिया, यार थोड़ी बहूत दिक्कतें हर परिवार में।होती है, दोस्ती में होती है प्यार में होता हैं, माँ बाप के बीच होता है , लेकिन अग़र दिक्कत ऐसी हो की उसका कोई उपाय ना हो तो आपके पास सिर्फ दो विकल्प होते है, या तो आप खुद को सौंप दो हार मान लो या आप खुद से कोई रास्ता बनाओ। साक्षी ने भी वही किया और कोई भी शिक्षित व्यक्ति अगर वो साक्षी जैसी परिस्थितियों में होता तो वह भी वही करता है जो उसने किया। साक्षी में अपने परिवार का हमेशा साथ दिया लेकिन इसबार सवाल उसके ज़िंदगी का था, उसके अपने आत्मसम्मान की बात थी। लिहाजा उसने अपने परिस्थितियों को भी ध्यान रखकर अजितेश से शादी कर सही फैसला लिया है, जिसमे पुरे भारत को, हम सभी का उनका साथ देंना चाहिए, बात सिर्फ।समझने कि है अगर उसके पिता ने अपनी बेटी के लिए थोड़ी से भी हमदर्दी दिखाई होती, इंसानियत दिखायी दिखाई होती तो उसे आज ये दिन नही देखने पढ़ते ।
आज साक्षी और अजितेश को समझने की जरूरत है उन्होंने जो किया सब सही किया, और उसके परिवार को भी ये बात समझनी चाहिए की हर काम हथियार और अहंकार से नहीं किया जाता , वो उनकी बेटी थी जो अपने पिता की इज्जत बचाने के लिए कुछ भी कर सकती थी लेकिन उन्होंने ने उसे कभी समझने का अपनी बात कहने का मौका तक नहीं दिया।
आज फिर एक इंसान को इंसानियत और support की जरूरत है, सभी से मेरा अनुरोध है की उनके खिलाफ जो गलत पोस्ट किये जा रहे है, वो ऐसा ना करें। क्योंकि आज उसमे किया अगर ऐसी मज़बूरी किसी और लड़की को मिले तो वो कल फिर ऐसी घटना होगी, जरूरत एक सकारात्मक दृश्टिकोण से समस्या को सुलझाने की हैं। इसे किसी राजनैतिक नजर देखने की बजाय न्याय की नजर से देखा जाना चाहिए। हमारे देश में महिलाओ को लड़कियों को एक बदलाव की आस है। आखिर 12वी सदी में भी कब तक पुरानी सोच में दबकर जीने को मजबूर होती रहेँगी देश को बेटियां।
उम्मीद है आप इसे सकारात्मक रूप से स्वीकार करेंगे....
🙏
(नोट :- इस लेख में लिखी गयी सभी बाते लेखक के अपने स्वतंत्र विचार है। इसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष या की भावनाओ को आहात करना नही हैं । हम सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त रहे हैं। )
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